16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ हुई रेप और दरिंदगी की घटना ने सारे देश को शौक में डाल दिया था। इस घटना को अंजाम देने वाले दोषियों के लिए फांसी की सजा की मांग को लेकर देश में प्रदर्शन जारी थे। पिछले साल 13 दिसंबर 2019 को इस मामले में सुनवाई थी जिसमे यह कहा जा रहा था कि इस सुनवाई में दिल्ली का पटियाला हाउस कोर्ट दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोर्ट ने सुनवाई 18 दिसंबर तक के लिए छोड़ दी। इसकी वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट को 17 दिसंबर को एक दोषी अक्षय ठाकुर की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करनी थी।
इसी के कारण निर्भया गैंगरेप मामले के दोषियों के खिलाफ जल्द डेथ वारंट जारी करने की याचिका पर सुनवाई पटियाला हाउस कोर्ट में टल गई थी। पटियाला हाउस कोर्ट का कहना है कि अभी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लिस्टेड है, ऐसे में उसी के बाद इस पर निर्णय हो सकेगा। पटियाला हाउस कोर्ट में इस याचिका को निर्भया के मां-बाप की ओर से दायर किया गया था।
निर्भया के दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट या ब्लैक वारंट जारी हुआ
दिल्ली की कोर्ट ने निर्भया के दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट या ब्लैक वारंट जारी करके फांसी के लिए 22 जनवरी सुबह 7 बजे का समय तय किया है। चारों दोषियों मुकेश, पवन, विनय और अक्षय को 22 जनवरी सुबह सात बजे फांसी दी जाएगी। हालांकि दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा है कि वो क्यूरेटिव याचिका दायर करेंगे।
डेथ वारंट या ब्लैक वारंट क्या होता हैं ?
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर-1973, यानी दंड प्रक्रिया संहिता- 1973 (CrPC) के तहत 56 फॉर्म्स होते हैं। फॉर्म नंबर- 42 को डेथ वारंट कहा जाता है। इसके ऊपर लिखा होता है, ‘वारंट ऑफ एक्जेक्यूशन ऑफ अ सेंटेंस ऑफ डेथ’। इसे ब्लैक वारंट (black warrant) भी कहते हैं। ये जारी होने के बाद ही किसी व्यक्ति को फांसी दी जाती है।
वारंट के फार्म पर भरने होते हैं ये खाली कॉलम :
• जेल नंबर
• दोषी का नाम
• केस नंबर
• वारंट जारी करने की तिथि
• फांसी की सजा की तारीख, समय और जगह
वारंट पर लिखा होता है कि कैदी को फांसी पर तब लटकाया जाए, जब तक उसकी मौत न हो जाए। कोर्ट द्वारा जारी डेथ वारंट सबसे पहले जेल प्रशासन के पास पहुंचता है और फिर जेल प्रशासन फांसी की प्रक्रिया शुरू कर देता है। प्रक्रिया पूरी करने के बाद जेल प्रशासन कैदी की मौत से जुड़े सभी दस्तावेज कोर्ट में जमा कराता है।
दोषी के पास डैथ वारंट के बाद क्या कानूनी अधिकार होता हैं ?
डेथ वारंट का मतलब यह नहीं है कि निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले के चार आरोपियों के पास कानूनी विकल्प समाप्त हो चुके हैं। चार अपराधी अभी भी मौत के वारंट के खिलाफ याचिका दायर कर सकते हैं। उनके पास सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पेटिशन दायर करने के साथ-साथ राष्ट्रपति के समक्ष मर्सी पेटिशन दायर करने का भी विकल्प है।
एक क्यूरेटिव पेटिशन एक दोषी के पास डेथ वारंट जारी होने के बाद अंतिम कानूनी सहारा होता है और इस याचिका को आमतौर पर चैम्बर में सुना जाता है।
फांसी घर के बारें में जानकारी
तिहाड़ में जो फांसी घर है उसके तख्त की लंबाई करीब दस फीट है। इसके ऊपर दो दोषियों को आसानी से खड़ा किया जा सकता है। इस तख्त के ऊपर लोहे की रॉड पर दो दोषियों के लिए फंदे लगें होते हैं। तख्त के नीचे भी लोहे की रॉड होती है, जिससे तख्त खुलता और बंद होता है। इस रॉड का कनेक्शन तख्त के साइड में लगे लिवर से होता है। लिवर खींचते ही नीचे की रॉड हट जाती है और तख्त के दोनों सिरे नीचे की तरफ खुल जाते हैं, जिससे तख्त पर खड़ा दोषी के पैर नीचे झूल जाते हैं। जेल प्रशासन ने इस बारें में यह बताया कि वो सभी दोषियों को एक-एक कर फांसी देंगे।
जेल अधिकारियों के मुताबिक, दोषियों के वजन के हिसाब से फंदे की रस्सी की लंबाई तय होती है। तख्त के नीचे की गहराई करीब 15 फीट है, ताकि फंदे पर लटकने के बाद झूलते पैर का फासला हो। कम वजन वाले दोषी को लटकाने के लिए रस्सी की लंबाई ज्यादा रखी जाती है, जबकि भारी वजन वाले के लिए रस्सी की लंबाई कम रखी जाती है। सूत्रों का कहना है कि अफजल की फांसी के ट्रायल के दौरान दो बार रस्सी टूट गई थी।
फांसी दिए जाने से पहले दोषी अगर वसीयत तैयार करना चाहता है और अपने रिश्तेदार से मिलने की ख्वाहिश करता है तो उसे इस बात की इजाजत दी जाती है। वसीयत तैयार करने के दौरान मजिस्ट्रेट को जेल में बुलाया जाता है। फांसी के दिन दोषी को नहाने के बाद पहनने के लिए नए कपड़े दिए जाते हैं।
फंदे पर लटकाने की यह होती है प्रक्रिया
दोषी को तैयार करने के बाद मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में दोषी को सेल से फांसी के तख्ते पर ले जाकर उसके चेहरे को कपड़े से ढक दिया जाता है। ऐसा करने से वो आसपास चल रही गतिविधि को नहीं देख पाते हैं। फांसी के डर के कारण जब कोई दोषी चल नहीं पाता है तो ऐसे में उसके साथ चल रहे पुलिसकर्मी उसे सहारा देकर ले जाते हैं। जेल मैन्युअल के अनुसार, इस दौरान एक डॉक्टर, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, जेलर, डिप्टी जेलर और करीब 12 पुलिसकर्मी मौजूद रहते हैं।
फांसी घर में एकदम खामोशी रहती है और सब कुछ कार्यवाही इशारों में होती है। ब्लैक वारंट में तय समय पर दोषी को वहां लाकर उसकी गर्दन में फंदा पहनाया जाता है, फिर जेलर के रुमाल गिराकर इशारा करने पर जल्लाद या फिर जेल का कर्मचारी लिवर को खींच देता है। लिवर खींचते ही तख्त खुल जाता है और फंदा पर लटका दोषी नीचे चला जाता है। कुछ देर बाद डॉक्टर वहां पहुंचकर उसकी जांच करता है। धड़कन बंद होने की पुष्टि होने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। उसके बाद उसे फंदे से उतार लिया जाता है।
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